ख़ुद से ही होड़ थी आगे बढ़ने की,
कोशिश भी बहुत की हमने पुरी करने की...
किताब खोला, दौड़ लगाई,
हर competition में ज़ोर लगाई...
आज खिड़की से बहार देखते हैं,
तो दुनिया पीछे छुट्ती दिखती है...
पेड-पौधे, लोग, घर,
मोटर-गाडी, सब...
चलो... इसी जीवन में कसम पुरी हुई,
हमने उतरकर ट्रेन को बहुत दुआ दी !
- मैं कवि तो नही
Wednesday, May 13, 2009
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badhiya...
ReplyDeletebahut dhanyawaad bad di :)
ReplyDeletetu shayar to nahi, magar yeh hasin..kisko dekhke tujhe shayari aa gayi..
ReplyDelete@Shruti...ek ho to bataun :D
ReplyDeleteGood one....yeh kaha pahuch gaye tum...
ReplyDeletesab se aage nikal gaye tum...
baki sab peeche reh gaye..
yeh kaha pahuch gaye tum...
hahaha
wah wah tp... great going...
ReplyDelete@Dinesh wah wah.....irshaad (again) :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअब भी बहुत है पडाव पार करने के लिये
ReplyDeleteये तो कुछ देर की छाव है आराम करने के लिये
राह और मंजीलों के इस धूप छाव के खेल मे
अभी बहुत कुछ करना है जिंदगी से मेल मे
- "Utkarsh"
@Utkarsh- bahut kuch keh diya apne thode hi shabdon mein
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